खटीमा का नाम #खटीमा क्यों पढ़ा लोगो की अलग अलग मान्यताएं है?
कुछ लोगो का कहना है कि-
बहुत समय पहले #खटीमा मार्केट जो है वहां बहुत बडा आम का बगीचा हुआ करता था। जिसमें बहुत ही खट्टे आम हुआ करते थे। जो खट्टे-आम के बाजार के नाम से जाना जाता था।जो बाद में खटेमा,और फिर खटीमा नाम से जाना गया।
यह भी मान्यता है कि -
मान्यवर नबाब मेंहदी अलीखान की दो बीबी थी एक का नाम सितारा बेगम दुसरी का नाम #खतिमा बेगम था।
सितारा के नाम से #सितारगंज और खतिमा के नाम से #खतिमा पढ़ा। कुछ समय पहले तक रेलवे टिकट और रेलवे स्टेशन पर #खतिमा लिखा था बाद मे खटीमा हुआ नानक मत्ता गुरूद्वारे के गेट न02पर नबाब मेंहदी अली खांन का नाम आज भी लिखा हुआ है।
और कुछ लोग यह भी बोलते है - बहुत समय पहले की बात है , "यहाँ मलेरिया और काला बुखार का प्रकोप महामारी का विकराल रूप ले लेता था। लोग बीमार हो जाते थे और वो खाट में पड़ कर ही वैद्य के यहाँ जाते थे। इसीलिए इसका नाम खटीमा अर्थात् खाटमा पड़ गया।’’
कुछ लोगो का यह भी है कहना कि- बहुत समय पहले यहां बाजार के बजाय लोगों का घर हुआ करता था। एक छोटा व्यापारी भटकते हुए यहां से जा रहा था।उसने एक व्यक्ति को अपने घर के दरवाजे पर खड़ा देखा तो उसने इस जगह का नाम पूछा। जब तक वह कुछ बोल पता तब तक उस की बीबी जो नाराज थी। दरवाजा बंद कर दिया और जोर से खट की आवाज आया जिसे कारण उसकी उंगली दब गई और मुह से माँ की आवाज निकला।
दोनो आवाज व्यापारी ने एक साथ सुनी और तब से खटीमा नाम से जाना जाता है।😜
थारू समाज के अनुसार यह भी है मान्यता-"थारू समाज में विवाह के समय जब बारात जाती है तो वर को रजाई ओढ़ा दी जाती है और खाट पर बैठा कर ही उसकी बारात चढ़ाई जाती है। वैसे आजकल रजाई का स्थान कम्बल ने ले लिया है। इसलिए भी इस जगह खाटमा अर्थात् खटीमा पुकारा जाता है।’’
खटीमा भारत के उत्तराखण्ड राज्य के #ऊधमसिंह नगर जिले में स्थित एक नगर निगम बोर्ड है। खटीमा नगर पंचायत को वर्ष 1988 में उच्चीकृत कर नगर पालिका का दर्जा दिया गया था। यहाँ पर कुमाऊँनी लोग बड़ी संख्या में बसे हुए हैं जो पिथौरागढ़ के पहाड़ी क्षेत्र से यहाँ आकर बसे हैं। यहाँ पर सिखों और मुसलमानों की भी बहुत बड़ी संख्या है। मुख्य भाषाएँ हैं हिन्दी और कुमाऊँनी (पहाड़ी)। भूस्कावामित्व का मुद्दा अहम है क्योंकि पर्वतीय व थारू जनजाति के मध्य हुई जमीन की खरीदफरोख्त अब तीन पीढ़ी आगे बढ़ चुकी है और अभी भी अभिलेखों में भूस्वामी मूल व्यक्ति ही हैं।
खटीमा यों तो एक बहुत पुराना क़स्बा है । यह थारू जाति का आदिवासी क्षेत्र है।
खटीमा को मुगलों के शासनकाल में इसे थारू जन-जाति के लोगों ने आबाद किया था।
यहाँ के मूल निवासी महाराणा प्रताप के वंशज राणा-थारू है।
2001 की जनगणना खटीमा में 1,20,487 की आबादी थी. पुरुषों और महिलाओं की जनसंख्या 46% से 54% है. खटीमा 66% की औसत साक्षरता दर, 59.5% के राष्ट्रीय औसत से अधिक है: पुरुष साक्षरता 73% है, और महिला साक्षरता 58% है. यहाँ मुख्य रूप से कुमाऊंनी लोगो का क्षेत्र तय हो चुका है. शहर में एक बड़े आकार का सिख और मुस्लिम आबादी है. मुख्य भाषाओं हिंदी और कुमाऊंनी (पहाड़ी) हैं
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें